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Hindi Short Story- टैक्सी

 



Hindi Short Story- टैक्सी

 

पिछले रविवार को मैं और मेरे पति अपनी छोटी-सी बच्ची के साथ द्वारका गए थे मेरी ननद के घर। मेरी ननद के घर पर मेरे सास-ससुर आए हुए थे। हम उन्हीं से मिलने द्वारका गए थे। पूरा दिन बहुत हँसी-खुशी में बीता। विभिन्न प्रकार के व्यंजन पकाए और खाये गए। मेरी ननद स्वादिष्ट खाना बनाने और खाने की शौक़ीन हैं। ये गुण उन्हें मेरी सास से विरासत में मिला है। वो क्षेत्रीय और राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय प्रत्येक प्रकार के पकवान बड़ी ही सरलता और सुगमता के साथ बनाने में माहिर हैं। उस रविवार भी भोजन से पेट तृप्त हुआ लेकिन आत्मा नहीं। मन कर रहा था की बस यूँ ही खाते-पीते रहें।

 

रात होने लगी तो उनसे विदाई लेकर अपने घर वापिस चलने के लिए हमने ओला की एक टैक्सी बुक की। रात के लगभग साढ़े नौ बजे हुए थे। हम लोगों को टैक्सी का इंतज़ार करते हुए आधा घंटा हो चुका तो हम ननद के घर से नीचे उतर कर उनके अपार्टमेंट की गेट पर आकर बैठ गए। हमने टैक्सी वाले को कई बार कॉल किया। उसने हर बार कहा की वो अपार्टमेंट के आस-पास ही है। हर बार फ़ोन करने पर वो कहता 'मैं आपके अपार्टमेंट में ही घूम रहा हूँ और आपका ही एड्रेस ढूंढ रहा हूँ। प्लीज बुकिंग कैंसिल मत कीजिए। मैं आपको आपके घर छोड़ कर ग़ाज़ियाबाद जाऊँगा। आज मुझे रात भर टैक्सी चलानी है।'

लगभग पौना घंटा इंतज़ार करने के बाद वो टैक्सी अपार्टमेंट की गेट पर पहुँची। मेरे ननद और नन्दोई जो हमारे साथ हमारी टैक्सी आने का इंतज़ार कर रहे थे उनसे विदाई लेकर हम टैक्सी में बैठ गए। जैसे ही टैक्सी में बैठे टैक्सी वाला मेरे पति से इधर-उधर की बातें करने लगा। कभी वह कहता कि इस बारे में आपका क्या ख्याल है तो कभी पूछता कि क्या दिल्ली में लॉक डाउन की बात आपने सुनी है? फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि वह लगभग बीस सालों से टैक्सी चला रहा है।

 

ग़ाज़ियाबाद में इतने सालों से टैक्सी चला रहा है और द्वारका पहली बार आया है। फिर उसने बताया कि वह किसी दूसरे सेक्टर में गलती से घुस गया था और हमारा एड्रेस उसे नहीं मिल रहा था। कुछ देर बाद मेरे पति से कहने लगा कि आपने ओला एप्प पर गलत एड्रेस डाला है। हमने अपना मोबाइल भी दिखाया तो उसने गाड़ी मोड़ ली ये कहकर कि आपका डेस्टिनेशन एड्रेस तो द्वारका से सिर्फ दो किलोमीटर पर ही है, जो पीछे छूट गया है। हमने उसे बताया कि हमें गोविंदपुरी, कालकाजी जाना है, ना की राजापुरी। अगर द्वारका से दो किलोमीटर ही जाना होता तो हम टैक्सी क्यों बुक करते? पर वो अपनी धुन पर सवार रहा। उसने हमारी एक ना सुनी। उसकी टैक्सी वापस द्वारका कि तरफ दौड़ रही थी। बड़ी मुश्किल से उसने हमारी बात मानी और उसने दो किलोमीटर फ्लाईओवर पर उल्टी दिशा में गाड़ी चलाने के बाद फिर यू-टर्न लिया हमारे कालकाजी की तरफ।

 

उसकी इस हरकत से हम दोनों को ही बहुत गुस्सा आ रहा था। रात के ग्यारह बजने वाले थे, हमारी बच्ची गाड़ी में ही सो चुकी थी। वो नन्ही बच्ची हमारी परिस्थिति से अनजान बेफ़िक्र सो रही थी। हम दोनों भी पूरे दिन की भागदौड़ से थके हुए थे और थोड़ी शांति चाहते थे। रोड पर ज्यादा गाड़ियाँ नहीं थीं। उसके लगातार एक ही बात बोलते रहने की वजह से हमें चिढ़ हो रही थी। वो हमारी परिस्थिति से मिलती-जुलती एक और पैसेंजर की बात बता रहा था कि कैसे एक पैसेन्जर इस टैक्सी ड्राइवर को रात में इधर-उधर घुमाता रहा। और फिर बड़े शान से टैक्सी ड्राइवर बताने लगा की जब उसने पैसेंजर के हाथ में बिल थमाया तो उस पैसेंजर के होश उड़ गए। उसका कहना था कि हम लोगों के होश भी अभी थोड़ी देर में ठिकाने आ जाएँगे जब हमारे हाथ में बिल आएगा। 

 

वो टैक्सी ड्राइवर हमें भी शार्ट कट के बहाने से सी. आर. पार्क से घुमा कर लाने लगा लेकिन वहाँ तो रात होने की वजह से हर गली में दिल्ली पुलिस की बैरिकेडिंग लगी हुई थी। जब उसे किसी भी गली से निकलने की जगह न मिली तो उसने टैक्सी को अलकनंदा की तरफ घुमाया। वहाँ भी दिल्ली पुलिस की बैरिकेडिंग लगी हुई थी। तब टैक्सी ड्राइवर ने गोविंदपुरी मेट्रो के लिए नेहरू प्लेस वाला रोड लिया। एक घंटे तक हमें घुमाने के बाद उसने हमारे डेस्टिनेशन एड्रेस पर हमें साढ़े ग्यारह बजे पहुँचाया। पौने घंटे का सफर हमारे लिए डेढ़ घंटे का पड़ा। टैक्सी ड्राइवर की उल्टी-सीधी बातों और टैक्सी को लम्बे रास्ते से लाने की वजह से मुझे बहुत असुरक्षा की भावना आ रही थी। रात बढ़ती जा रही थी। रास्ते सुनसान-से थे।

 

मैंने थोड़ी राहत की साँस ली कि इतनी देर बाद ही सही हम अपने घर के पास पहुँच गए थे। जैसे ही बैग लेकर और बच्ची को लेकर मैं टैक्सी से उतरी तो टैक्सी वाले ने अपने मोबाइल में बिल दिखाया 817/- रुपए। उस ड्राइवर ने अपनी कही बात को साबित भी कर दिया। लेकिन टैक्सी किराया 266/- रुपए की जगह 817/- रुपए सुनते ही हम दोनों को भी झटका लगा कि ड्राइवर तो मनमानी कर रहा था। मेरे पति ने और मैंने उतना किराया देने से मना किया तो वह गुस्सा हो गया। वह गुस्से में चिल्लाने लगा कि 'अब समझ आ गया कि इतना घुमा रहे थे मेरी टैक्सी को, तो क्या मुफ्त में ही। अब बिल भरो 817/- रुपए। मैं तो पहले ही कह रहा था कि आपके होश उड़ जाएँगे।'

 

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बच्ची को मैंने गोद में लिया हुआ था, वो अब भी सो रही थी। बैग को मैंने अपने दूसरे कंधे पर लटकाया हुआ था। रोड पर इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही चल रही थीं। टैक्सी ड्राइवर मेरे पति से बहस करने लगा। हमारी गली सुनसान थी। मेन रोड के साइड्स पर लगने वाली सब्ज़ी और फलों का बाज़ार बंद था। सब सब्ज़ी और फल बेचने वाले अपने घर जा चुके थे। वहाँ पर खाली रेड़ियाँ एक तरफ लगी हुई थीं। कल सुबह फिर वहाँ बाज़ार सजने वाला था। लेकिन रात के लगभग बारह बज रहे थे। हम जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँच कर सोना चाहते थे। मेरे पति को अगले दिन ऑफिस भी जाना था। लेकिन टैक्सी ड्राइवर गुस्से में चिल्ला रहा था। वह अपना मनमाना किराया ही वसूलना चाहता था। वो टैक्सी ड्राइवर पुलिस को बुलाने की धमकी देने लगा। इतनी रात में मुझे बहुत असुरक्षित महसूस हो रहा था। उसने ओला कंपनी के कुछ लोगों से मेरे पति की मोबाइल पर बात करवाई। मुझे बहुत घबराहट हो रही थी। बल्कि मुझे डर लगने लगा कि अगर पुलिस आएगी तो क्या होगा। मैंने अपने पति से कहा कि दे दीजिए 817/- रुपए और चलिए घर। लेकिन मेरे पति इस बात के लिए राजी नहीं थे। उसी समय कुछ दूर पर एक और टैक्सी आकर रुकी। मेरे पति और वो टैक्सी ड्राइवर उस टैक्सी के पास गए और उसके ड्राइवर से किराए के बारे में बात की। मेरे पति ने कहा, 'किलोमीटर के हिसाब से किराया ले लो, मैं दे दूँगा।' दूसरी टैक्सी वाले ने न्यूट्रल सी बात की और चला गया। हमारा टैक्सी वाला  बात पर ही अड़ा रहा। उसने पुलिस को कॉल किया।

 

मेरे पति ने परिस्थिति को भाँपते हुए मुझे और बच्ची को हमारे फ्लैट तक छोड़ा, तो वो टैक्सी ड्राइवर हमारे पीछे-पीछे फ्लैट के गेट तक यह कहकर आया कि आप लोग तो मेरा पैसा दिए बिना गायब हो जाओगे। मैं सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने फ्लैट का ताला खोल कर अंदर आ गई। बच्ची को सोफे पर ही सुला दिया। मेरा मन बहुत आशंकित हो रहा था। रात के साढ़े बारह बजे हुए थे लेकिन मेरी आँखों से नींद उड़ चुकी थी। मेरे पति सुनसान रोड पर उस टैक्सी-ड्राइवर से बहस कर रहे थे। पुलिस किसी भी वक़्त वहाँ पहुँचने वाली थी। जब तक सबकुछ मेरी आँखों के सामने था तब तक मन में एक तसल्ली तो थी कि मैं पति के साथ थी। लेकिन अब मुझे बहुत डर लग रहा था। मैंने रोड-रेज के बहुत किस्से पढ़े और सुने और न्यूज़ में देखे हैं। मन में बुरे विचार आ रहे थे। अगर टैक्सी-ड्राइवर ने चाकू-वाकू मार दिया तो। या अपने और टैक्सी वालों को बुला कर मेरे पति को मार-पीट डाला तो। पुलिस अगर मेरे पति को पुलिस स्टेशन ले गई तो। मेरा दिल घबरा रहा था क्योंकि बाहर क्या हो रहा था मुझे नहीं पता था। बार- बार पति को फ़ोन लगाती थी और वो काट देते थे। 

 

मेरी ननद द्वारका से टैक्सी में बैठने से लेकर हमारे घर के मेन रोड तक पहुँचने तक लगातार व्हाट्सएप्प पर मैसेज कर रही थीं। जैसे ही मैंने टैक्सी ड्राइवर के अजीबो-गरीब व्यवहार के बारे में उन्हें मैसेज में बताया था तबसे वो मेरे साथ लगातार फ़ोन पर थीं। मेरे डर को समझते हुए उन्होंने मुझे अपने पड़ोसियों से मदद माँगने को कहा। लेकिन हमारे फ्लोर पर एक फ्लैट में दो-तीन लड़के रहते थे और ऊपर वाले फ्लैट में एक पंडितजी। मैंने पंडितानी को कॉल किया तो वो कहने लगी कि वो सभी सो रहे हैं कहकर फ़ोन काट दिया। हमारे फ्लोर पर रहने वाले लड़कों को मैंने कभी देखा नहीं था, न ही उन्हें जानती थी। मैं तो ये भी नहीं जानती थी कि वो लड़के मेरे पति को जानते थे या नहीं। और उनके दरवाज़े की घंटी मैं रात को पौने एक बजे कैसे बजाती ? इसी कशमकश में कुछ और डरावना वक़्त बढ़ा। मेरी ननद ने हिम्मत बंधाते हुए मुझे उन लड़कों की मदद लेने की सलाह दी। घबराते हुए मैंने उनके दरवाज़े की घंटी बजाई। दो लड़के जाली वाले दरवाज़े पर खड़े होकर मेरी पूरी बात सुनकर मेरे पति की मदद करने के लिए अपने घर पर ताला लगा कर रोड पर मेरे पति के पास चले गए। 

 

मैं जितने बार भी अपने पति को फ़ोन करती तो वो फ़ोन काट देते। मेरा डर और बढ़ जाता। अगर बच्ची की ज़िम्मेदारी न होती तो मैं ताला लगा कर कबकी अपने पति का मनोबल बढ़ाने पहुँच चुकी होती। रात के लगभग डेढ़ बजे मेरे घर की घंटी बजी। मैंने डरते हुए पूछा, 'कौन ?' मेरे पति की आवाज़ सुनकर मैंने घर का दरवाज़ा खोला। उनको सही सलामत देखकर मेरी जान में जान आई। उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस आई थी। पुलिस वाले ने पूरी बात सुनकर मेरे पति को 317/- रुपए किलोमीटर के हिसाब से देने के लिए कहा और टैक्सी-ड्राइवर को अपने साथ ले जाने लगा तो वो रो पड़ा। तब पुलिस वाले ने उसे छोड़ दिया। अपनी ननद से इनकी बात करवा कर हम इस भयावह रात को भुला कर सोने चले गए। मैं उन लड़कों की बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि हमारे मुश्किल समय में उन्होंने हमारी मदद की। इस हादसे के बाद जब भी टैक्सी में जाने की बात होती है तो दिल दहल जाता है। 

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