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Hindi Short Story - वापसी

 



Hindi Short Story - वापसी


रात बहुत हो चली थी। लेकिन कहीं रात को ठहरने लायक जगह नहीं मिल रही थी। शरीर थककर चूर-चूर हो रहा था। जी चाह रहा था कि कहीं भी लेट जाऊँ। आँखें नींद के बोझ से बंद हो रहीं थीं। कदम साथ नहीं दे रहे थे। फिर भी इस आशंका में कि कहीं कोई ढूंढते हुए यहाँ न आ पहुँचे, जल्द से जल्द इस जगह से दूर जाना चाहता था। अब तो बहुत दूर निकल आया हूँ, यही सोचकर पास ही के एक पार्क की दीवार फाँदकर पार्क के अंदर घुस गया। नींद ने सारे नज़ारों को ढक दिया। 

जब आँख खुली तो सूरज सिर पर चढ़ आया था। अचानक भूख-प्यास का अनुभव होने लगा। पार्क में इधर-उधर नज़र दौड़ाई लेकिन आसपास न तो कोई फल था और न कोई नल। उस पार्क में कुछ छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे थे। उन्हें देखकर वह यादों में खो गया। उसका बचपन भी कितना सुनहरा था। जिस चीज़ की इच्छा करता वही हाज़िर हो जाती। माँ-बाप का इकलौता बेटा जो था। स्कूल में अच्छे संगी-साथी मिले। 

लेकिन कॉलेज में आते ही जैसे उसकी दुनिया ही बदल गई। उसके अच्छे व्यवहार के कारण कई लड़कियाँ भी उसकी दोस्त बन गईं। उन्हीं में से एक से उसे प्यार हो गया था। वो काली आँखों वाली लड़की, जो हंसमुख भी थी और बुद्धिमती भी, उसका नाम सरोज था। लड़कों से वो अधिक बातें नहीं करती थी। उसकी इसी खासियत की वजह से वो उसे मन ही मन चाहने लगा था। मगर उसे क्या पता था कि सरोज ने कभी उसके बारे में ऐसा सोचा भी नहीं था। 

जब उसे ये पता चला कि सरोज की शादी होने वाली है तो जैसे वो पागल-सा हो उठा। उसने सरोज से जाकर कह दिया की वह उससे प्यार करता है। लेकिन तब तक सरोज ने राखी आगे बढ़ा दी थी। वह मधुर कंठ से बोली, "देखो जवानी का प्यार भावना से जुड़ा होता है, दुनियादारी की सच्चाई से नही क्योंकि उस समय भावना का वेग प्रबल होता है। जिसमें हम सही और गलत का फैसला नहीं कर पाते हैं। मैंने तुमसे कभी प्यार नहीं किया। बल्कि मेरी सगाई तो कॉलेज में दाखिला लेने से पहले ही तय हो गई थी। इसलिए मेरा विचार अपने मन से निकाल दो। तुम एक समझदार लड़के हो। अपनी ज़िन्दगी में कुछ लक्ष्य बनाओ और उन्हें पाने के लिए प्रयास करो।" 

उसका दिल टूट गया और अचानक वह बोल उठा, "मैंने तुम्हें ही अपने जीवन का लक्ष्य माना था, लेकिन अब क्या फायदा। क्या तुम मेरी एक विनती सुनोगी।" सरोज खामोश रही। वह बोला, "मैं तुम्हारा ख्याल तो शायद दिल से नहीं निकाल सकूँगा लेकिन तुम्हें उस नज़र से कभी नहीं देखूँगा जिससे पहले देखता था। ये मेरा वायदा है। लेकिन ये राखी मुझे न बाँधो तो मुझपर अहसान होगा। नहीं तो तुम मुझे इस राखी के बहाने ही याद आया करोगी।" सरोज चुपचाप सिर झुकाए वहाँ से चली गई।   

तभी एक फुटबॉल उसकी गोद में आ गिरी और उसके विचारों की तंद्रा टूट गई। पार्क में खेल रहे बच्चों ने बॉल देने की ज़िद की तो वह उनकी तरफ बॉल फेंककर फिर स्मृतियों में खो गया। उसके कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म हो चुकी थी। उसके माता-पिता ने बहुत ही सुन्दर लड़की से उसकी शादी करवाई। उसकी पत्नी भी तो कितनी तन्मयता से सबकी सेवा करती। लेकिन वह कभी भी अपनी पत्नी से प्यार के दो बोल न बोलता। कल जब उसे सरोज की सहेली से पता चला कि सरोज की मौत एक हादसे में हो गई है तो वह बिना किसी को बताए घर छोड़ कर निकल पड़ा।   

उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। तभी उसे पत्र का ध्यान आया जो सरोज ने उसके लिए लिखा था और अपनी सहेली को उसको देने के लिए कहा था। उसने जेब से वो पत्र निकाला और बहुत देर तक उस पत्र को टकटकी लगाए देखता रहा मानो सरोज को ही देख रहा हो। उसने लिफाफा खोलकर पत्र पढ़ना शुरू किया। 


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उसमें सरोज ने मोती जैसे सुन्दर अक्षरों में लिखा था --

"तुम मेरे मित्र हो, भाई समान हो, इसलिए ये पत्र लिखकर तुमसे प्रार्थना कर रही हूँ। मुझे कुछ दिनों पहले ही पता चला कि तुम्हारी शादी हो गई है और तुम्हारी पत्नी बहुत सुन्दर है। लेकिन क्या ये सच है की तुम अपनी पत्नी से उचित व्यवहार नहीं करते? अगर सचमुच ऐसा है, तो क्यों ? क्या तुम भूल गए कि मैंने क्या कहा था ? अगर तुम अपनी पत्नी से ऐसा व्यवहार करोगे तो मैं अपने आप को दोषी महसूस करूँगी। क्या तुम मुझे पाप का भागीदार बनाना चाहते हो ? मेरी प्रार्थना स्वीकार कर कृपया अपनी पत्नी को उसका उचित अधिकार दो। ध्यान रहे कि उसे कोई शिकायत ना रहने पाए।

तुम एक स्त्री का दुःख नहीं समझते। एक स्त्री जो अपने माता-पिता तथा प्रियजनों को छोड़ कर शादी के बाद पति के घर आती है तो किसके लिए ? किसके भरोसे पर वह सारी ज़िन्दगी बिताती है ? जब पति ही निष्ठुर निकले तो उसका क्या हाल होता है इसका एहसास तुमको नहीं है। ऐसी स्त्री जीते जी ही नर्क भोगती है। इसलिए मेरी पहली और आखिरी प्रार्थना स्वीकार कर अपनी पत्नी को उसका अधिकार, प्यार और सम्मान दो।"

एक मित्र

सरोज


पत्र पढ़कर उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। आज उसे ऐसा लगा जैसे सरोज खुद अपनी आखिरी इच्छा बता रही है। वह सरोज की आखिरी इच्छा और आदेश को कैसे अनदेखा कर सकता है ? तभी कंधे पर किसी ने हाथ रखकर पुकारा, "पलाश! बेटा घर चलो। माँ और बहू बहुत परेशान हैं। तुम्हारे पिताजी तुम्हें शहर भर में ढूंढ रहे हैं। पलाश ने आँखें पोंछी और चलने के लिए खड़ा हो गया। आज उसका मन बिल्कुल शांत था और बरसों की कुलबुलाहट कहीं गायब हो गई थी। सरोज उसके लिए आज उसका पहला प्रेम नहीं थी बल्कि उसके जीवन की पथ प्रदर्शक बन गई थी। अब उसे बार-बार कुसुम का ही विचार आ रहा था। इतने महीनों से उसकी बेरुखी ने कुसुम को जो आहत किया था उसके लिए वह कैसे माफी माँगेगा। यही सोचते हुए सारा रास्ता कट गया। आज उसकी वापसी हो रही थी अपनी कुसुम की ओर, अपने घर की ओर, अपने भविष्य की ओर। 




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