Hindi Short Story
चोर...या.. भूत ?
रात को अचानक जब नींद टूटी तो क़दमों की आहट सुन लगा शायद ये
होंगे। लेकिन ये तो बिज़निस के सिलसिले में दिल्ली गए हुए हैं और रविवार को वापस
आने का कह कर गए हैं, तो फिर इस आधी रात के
वक़्त कौन हो सकता है ? शायद चोर या फिर.... भूत? अचानक फिर कुछ खटकने की आवाज़ हुई तो मैं पसीने से तर - बतर हो गई। कौन
हो सकता है ?
मैंने पास सोई हुई अपनी बच्ची को देखा जो आराम से सो रही
थी। मैं क्या करूँ ? इतनी रात गए किसे बुलाऊँ? और कैसे ? अगर पीछे का दरवाज़ा खोलती हूँ तो आवाज़ होगी। चोरों ने अगर
वो आवाज़ सुन ली तो उसके बाद जो भी होगा उसका अंजाम खतरनाक हो सकता है। डर से मेरे
रोंगटे खड़े हो गए और गला सूखने लगा। ऐसे में कुछ सूझ भी तो नहीं रहा था। और उठकर
देखती इतनी हिम्मत भी तो नहीं जुटा पा रही थी।
नाईट बल्ब से कमरे में हल्की रौशनी थी। मैं धीरे से पलंग से
उठी और नाईट गाउन पहनकर कोई डंडा या सरिया तलाशने लगी जिसे चोर के सिर पर दे
मारूँगी। अचानक फिर किसी के दबे पाँव भागने की आवाज़ आई। मैं घबराकर पलंग पर सोई
अपनी बच्ची से लिपट गई। एक अनजान डर मुझे सताने लगा। हे भगवान ! जाने कौन है ? कुछ न कुछ तो करना ही होगा। मैंने कम्बल उठाया सोचा इसे चोर
पर डाल कर उसे दबोच लूँगी और फिर खूब शोर मचाऊँगी। शोर सुनकर कोई न कोई पड़ोसी मदद
के लिए तो आ ही जाएगा। मान लो ऐसा न हुआ तो ? फिर सोचा न हो तो
पास की बिमला बहन को ही फोन कर देती हूँ, वो तो ज़रूर आ ही
जाएँगी।
मैंने फोन की तरफ काँपते हुए
हाथ बढ़ाए। जल्दी -जल्दी पड़ोस की बिमला बहन का फ़ोन नम्बर मिलाया और धीमी आवाज़ में
बिमला बहन जी से कहा, "बहनजी हमारे घर में कोई
चोर घुस आया है। उसे पकड़ना है, जल्दी आ जाओ।" मगर
हमेशा ऊँचे स्वर में बोलने वाली बिमला बहनजी को मेरी धीमी आवाज़ कहाँ सुनाई देती।
बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा सकी की मेरे घर में चोर घुस आया है, आप आकर मेरी मदद करो। बहनजी से बात करके मेरी हिम्मत बँधी।
जब तक बिमला बहन आएँ, मैंने सोचा तब तक मैं
छुपकर पता करती हूँ की कितने चोर हैं और उनके पास क्या कोई हथियार हैं। मैंने
ड्रेसिंग टेबल पर पड़ा पाउडर का बड़ा डिब्बा उठा लिया कि कुछ न सही तो मुसीबत में
यही हथियार बहुत है। चोर के सिर पर इतना ज़ोर से मारूँगी कि फिर चोरी करना भूल
जाएगा।
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अचानक फिर खट - खट की आवाज़ सुनाई दी जैसे कोई कुछ खोल रहा
हो। मेरा घबराहट के मारे बुरा हाल हो रहा था। मैंने जैसे-तैसे कर अपने अंदर की
सारी ताकत को समेटा और पाउडर का डिब्बा और कम्बल को हाथों में लिए धीरे-धीरे आगे
बढ़ने लगी। आवाज़ रसोईघर के साथ लगे स्टोर रूम से आ रही थी। मैं नाईट बल्ब की रौशनी
में ऐसे आगे बढ़ने लगी जैसे दुश्मन के मोर्चे को ध्वस्त करने जा रही थी। खुटर-पुटर
की आवाज़ से लगा जैसे एक नहीं दो-दो मुसीबतें हैं। मैंने घबराकर बिना समय बर्बाद
किए कम्बल उनपर डाल दिया और पाउडर के डिब्बे से ज़ोर-ज़ोर से पीटने लगी।
तभी दरवाज़े पर किसी के आने की आवाज़ सुनाई दी। मैं बेतहाशा
दरवाज़े की तरफ दौड़ी और झटपट दरवाज़ा खोलकर बिमला बहन से लिपट गई। वो मेरी हिम्मत
बंधाने लगीं। उनके पति के हाथ में डंडा देख मुझे राहत मिली। मैंने झटपट सारी
बत्तियाँ जला दीं। उस स्टोर रूम में पहुँचकर भाई साहब ने बत्ती जलाई। उन्होंने
कम्बल पर पहलवान की तरह दो - तीन लाठियाँ
बरसाईं और फिर कम्बल हटाया।
हम सभी ये देखकर हैरान रह गए कि वहाँ कोई चोर या भूत नहीं
था बल्कि परसों की दिवाली की मिठाई के डिब्बों का ढेर था। जिसमें पड़ी मिठाइयाँ चूर-चूर
हो गई थी। ये देखकर बिमला बहन और उनके पति ज़ोर से हँस पड़े। मैं भी अपनी हँसी रोक न
सकी कि जिनपर मैं कम्बल डाल कर बेतहाशा पाउडर के डिब्बे से पीटती रही वो कोई चोर
या भूत नहीं थे।
ख़ैर मिठाई का जो हाल हुआ सो हुआ पड़ोसन की नींद भी खराब की।
तभी मेरे पाँव पर से कुछ गुज़रा। मैंने चीख मारते हुए आँखें बंद कर लीं। बिमला बहन
ने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "पगली, चूहे से डर गई। इतना
डरेगी तो काम कैसे चलेगा ? चलो, आज मैं तुम्हारे साथ सो
जाती हूँ। मैंने एक तरफ तो उनका धन्यवाद किया दूसरी ओर उन चूहों को कोसने लगी जिन्होंने
मुझे बेवकूफ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
1 टिप्पणियाँ
Ma'am the story is nice and language- words usage is very beautiful but the plot is a little predictable...
जवाब देंहटाएंMa'am you write in English and Hindi both! Wow
If you have any doubts, feel free to share on my email.