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Hindi Short Story - अजनबी

 



Hindi Short Story 

अजनबी


शाम ढल रही थी। रात का धुंधलका गहराता जा रहा था। सभी प्राणी अपने नीड़ को वापिस जा रहे थे। उसी समय दरवाज़े पर एक दस्तक हुई।

भीतर से एक कोमल स्वर उभरा "कौन है ?" कोई जवाब न मिलने पर नारी स्वर फिर से गूँजा "कौन है वहाँ ? बाहर से एक कड़क मर्दाना आवाज़ आई "मैं मुसाफिर हूँ। रात हो रही है, पनाह चाहता हूँ। पंडितजी घर में है क्या ?" भीतर से क़दमों की आहट नज़दीक आई और दूसरे ही क्षण दरवाज़ा खुला। स्त्री ने मुसाफिर का मुख गौर से देखकर पहचानने की कोशिश करते हुए पूछा "आप कौन हैं और किससे मिलना चाहते हैं ?" पुरुष ने उत्तर दिया "मैं फ़कीरा हूँ। यहाँ से कुछ ही दूर, नदी के उस पार रहता हूँ।  ज़रा पंडितजी को बुला दीजिये; वे मुझे देखकर अवश्य ही पहचान जाएँगे।"

स्त्री ने कोमल स्वर में कहा "पंडितजी तो दूसरे गाँव गए हैं किसी की शादी कराने के लिए। कल सुबह लौटेंगे। यह सुनकर पुरुष के मुख पर चिंता की रेखाएँ उभर आईं। उसने पूछा "यहाँ कहीं रहने का ठिकाना मिल सकता है ?" स्त्री ने गाँव के मंदिर की ओर इशारा कर कहा "शायद वहाँ आप रात बिता सकते हैं। फिर आशंकित होते हुए कहा "लेकिन आप मुसलमान हैं तो शायद वे आपको जगह नहीं देंगे। चलिए आज रात आप कुटिया में ही विश्राम करें।" पुरुष ने थोड़ा सोचते हुए हाँ में स्वीकृति दे दी और कुटिया के भीतर प्रवेश किया।

स्त्री ने अतिथि को भोजन दिया और उससे पूछा "आप पंडितजी को कैसे जानते हैं ? और आपको उनसे क्या काम है ?" पुरुष ने जवाब दिया "मैं एक बार नदी पार कर रहा था कि अचानक नाव भंवर में फँस गई और मैं डूबने लगा। दूसरे किनारे पर पंडितजी  सूर्यनमस्कार कर रहे थे। उन्होंने मुझे देखा और नदी में कूद पड़े और उन्होंने मुझे डूबने से बचाया। बस तभी से मैं उनका कर्ज़दार हो गया। आज मैं शहर में ये गहने बेचने जा रहा था कि रात हो गई और कहीं ठिकाना न मिलने की वजह से मैं पंडितजी से मदद माँगने आया था।"

स्त्री ने गहनों को देखा तो आश्चर्य से दंग रह गई "इतने कीमती ज़ेवर और इस साधारण से व्यक्ति के पास?" उसे कुछ शक हुआ। हो न हो ये कोई डाकू या ठग होगा। उसने फ़कीरा से कहा "रात बहुत हो गई है अब आप सो जाइए।" और वह खुद दूसरे कक्ष में ज़मीन पर चटाई बिछाकर एक कोने में लेट गई। लेकिन यकायक एक अनजाना डर उसके दिमाग में फैलता जा रहा था। उसकी आँखों में नींद का दूर दूर तक कहीं अता -पता न था। मन में बहुत अजीबोगरीब विचार उठ रहे थे। एक बलिष्ठ पुरुष उसकी कुटिया में विश्राम कर रहा था, जिसके विषय में उसे कुछ मालूम न था। वो व्यक्ति कोई डाकू, चोर, लुटेरा या अपराधी भी हो सकता है। कुटिया में उसे अकेला पाकर उसपर हमला भी कर सकता है। वह खुद को बहुत असुरक्षित महसूस कर रही थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों उसने उस अनजान पुरुष को अपने घर में रहने की इजाज़त दी। ये उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल हो सकती थी। रात गहरी और गहरी होती जा रही थी। विचारों के समुद्र में डूबते -उतराते जाने कब उसे नींद आ गई।

सुबह जब उसकी आँख खुली तो सूर्य का प्रकाश कुटिया में प्रवेश कर चुका था। आँखें खोलते ही उसे कल रात की घटना का स्मरण हो आया। वह जल्दी से उठी और फ़कीरा की चारपाई के पास आई। अरे ये क्या ! वहाँ तो कोई भी न था। उसे सब कुछ सपने जैसा लग रहा था। कुटिया के बाहर आकर उसने चारों तरफ देखा। वहाँ कोई न था। भीतर आकर उसने झाड़ू उठाई और कुटिया की सफाई करने लगी। अचानक चारपाई के नीचे उसे कुछ दिखाई दिया। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ।" अरे ये तो उस मुसाफिर के गहनों की पोटली है ! क्या वो इस पोटली को भूल गया है या जानबूझकर ......... " नहीं, नहीं ज़रूर वो इन गहनों को ले जाना भूल गया है। अब मैं क्या करूँ ?


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तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। कौन हो सकता है ? शायद, वही मुसाफिर। हो सकता है, वो अपनी गहनों की पोटली लेने आया है। दरवाज़ा खोलते ही सामने पिताजी खड़े थे। पिताजी को देखकर उसे थोड़ी राहत मिली। पंडितजी कंधे से सामान की पोटली उतारते हुए बोले "थोड़ा पानी पिला दे बिमला।"

बिमला तुरंत एक लोटे में पानी ले आई और पिताजी को पानी पिलाया। पंडितजी ने पानी पीकर बिमला को अपने झोले में से बहुत-सा सामान निकालकर दिया जो उन्हें दूसरे गाँव में कल करवाई हुई शादी में मिला था। बिमला ने सारे सामान को लेते हुए पंडितजी से कहा "पिताजी मुझे आपसे एक बात करनी है।" पंडितजी थके हुए थे, बोले "स्नान-ध्यान करके तुम्हारी बात भी सुनूँगा। मेरे लिए नाश्ता बना दो।" बिमला नाश्ता बना तो रही थी लेकिन वो बहुत बेचैन हो रही थी अपने पिताजी को सारी बात बताने के लिए। जैसे ही पंडितजी नाश्ता करने बैठे बिमला ने पंखा हाथ से झलते हुए बीती रात का सारा घटनाक्रम सुनाया। फिरवाह गहनों की पोटली भी दिखाई। पंडितजी भी सबकुछ सुनकर सोचने लगे कि फ़कीरा को ढूंढकर जल्द से जल्द उसकी पोटली वापस कर देंगे। पंडितजी ने फ़कीरा को बहुत ढूँढा मगर वो कहीं नहीं मिला।

अंततः पंडितजी ने फैसला लिया कि वे उस पोटली को पुलिस को सौंप देंगे। किन्तु बिमला ऐसा नहीं चाहती थी। उसका मानना था कि  फ़कीरा एक दिन ज़रूर वापस आएगा। वो तो नहीं आया लेकिन पुलिस वहाँ आ गई। दोनों से फ़कीरा का पता पूछने लगी। पुलिस ने बताया कि कैसे फ़कीरा जेल से भागकर इधर-उधर छिपने कि कोशिश करता रहा है। इस दौरान उसने सेठ जगजीवन की हत्या करके उनके गहनों को लूट कर भागा है। बिमला और पंडितजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। यदि फ़कीरा ने गहने हत्या करके लूटे थे तो फिर उन्हें पंडितजी की कुटिया में क्यों छोड़ गया ? ये सवाल उन दोनों के दिमाग को मथ रहा था।  क्या करें ? क्या पुलिस को उन गहनों के बारे में बता दें ? पुलिस क्या करेगी उन दोनों के साथ ? इसी उधेड़ बुन में किसी नतीजे पर न पहुँच सके और पुलिस वापस चली गई। 

पंडितजी ने फ़कीरा के बारे में बहुत से लोगों से पूछा लेकिन कुछ पता न चला। जब पंडितजी सेठ जगजीवन के घर गए वहाँ की स्थिति बिलकुल बदली हुई थी। सेठजी का परिवार शोकाकुल था, उनकी पत्नी शोक से पागल सी हो गई थी। उनकी बेटी की शादी दहेज न देने के अभाव में टूट चुकी थी। पंडितजी का हृदय ये सब देखकर द्रवित हो गया। वो जल्दी से जल्दी घर पहुँचना चाहते थे और उन गहनों के बोझ को शीघ्रातिशीघ्र सेठजी के घरवालों को सौंपना चाहते थे। सब समझने के बाद बिमला ने अपना भय व्यक्त करते हुए कहा "पिताजी आप उनसे कहेंगे क्या? ये गहने आपके पास कैसे पहुँचे ? आपकी बात पर कौन विश्वास करेगा वहाँ ?" पंडितजी भी कुछ देर के लिए असमंजस में पड़ गए लेकिन फिर सँभालते हुए बोले "तुम भी मेरे साथ चलो। हम उन्हें सारी बात बताएँगे और उनकी संपत्ति उन्हें लौटाकर रोज़-रोज़ के मानसिक संताप से मुक्ति पा लेंगे। चलो बेटी।"    

 

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