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Ultimate Hindi शायरी & Best SMS Collection-2023


 


Ultimate Hindi शायरी & Best SMS Collection-2023


  आज़ाद ख़्याल

 


 हर राह, हर मोड़ पर मिलो तुम ही तुम

किसी और की सूरत हमको भाती नहीं है

 

नज़र मिलाकर अब बात न कर सकूँगी

दीवानगी अपनी ज़ाहिर जो हो गई है

 

   इस दिल पर लिखें हैं अफ़साने हज़ारों

                      अफ़सोस, कोई पढ़ने वाला नहीं               

 

ख़ुदा की बरकत कहूँ

याकि अपनी किस्मत

मुझे मिली है खुदाई

जब से तुम मिले मुझको

 

तुम्हारी यादों को संभाला है मैंने

अपने हाथों के छालों की तरह

तुम्हारी मोहब्बत को संभाला है

दिल के सीपी में मोती की तरह

 

तेरे जन्मदिन पर तुझको

मुबारक ये रौशनी

ये फ़ूल, ये तोहफ़े

ये खुशियाँ

मुबारक हों तुझको

तेरे जन्मदिन पर

 

जो ख़ास यार था

वही यार मार निकला

 

कहते हो गर्दिशे हालात में मुस्कुराती रहूँ

तुम ये करके दिखाओ तो जानूँ

 

अपने नाखूनों को क्यों न बढ़ाऊँ मैं

मेरे ज़ख़्मों में खुजली जो होती है

 

आसमां आज लाल क्यों है

क्या सूरज का क़त्ल हुआ है ?

 

न जाने किस ओर से चली आई ये हवा

ये खुशबू तो बहुत जानी- पहचानी है

 

                                   मुझसे मत पूछो मेरे जीने की तमन्ना

मुझसे मत पूछो मेरे मरने का सबब

कि इससे कोई बदनाम हो जाएगा

 

मुझे आसमान की ऊँचाई न दिखाओ

मुझे धरती पर ही रहने दो

मैं इंसान हूँ कहीं बहक न जाऊँ

 

शम्मां तू जल इतना कि

सब परवाने फ़ना हो जाएं

बचे न कोई भी आशिक़

तेरी मौत पर रोने को

 

मेरी बेवफाई पे शिकवा क्यूँ

मैं तो रास्ते की  धूल  हूँ 

कभी यहाँ हूँ कभी वहाँ

 

मुझे कोई बता दे मेरे मुक़्कद्दर का फैसला

कि मैं इस ओर हूँ या हूँ उस ओर मैं

कि मैं जिस ओर हूँ वो है धरती का छोर

या है ऊँचे आसमान का ये सिरा

 

सोचकर देखा तो तुम पराए नज़र आए

दिल से पूछा तो जवाब मिला-

तुम मेरे अपने हो

 

दुश्मन की नफ़रत का भरोसा है

दोस्तों की वफ़ा का नहीं

दोस्त तो दग़ा दे जाएंगे

दुश्मन तो दुश्मन ही रहेगा

 

सलाहियतों की कमी नहीं है मुझमें मगर

लोग उन पर गौर न कर मेरी खामियां देखते हैं

 

मेरी वफ़ादारी का है सिला क्या

तुम इक बार नज़र भर देख लो

मुझे जीने का बहाना मिल जाए

 

दुनिया में मेरी जब तू ही नहीं

जीकर मुझको फिर क्या हांसिल

मरके भी ग़र जो तू न मिले तो

मरकर मुझको फिर क्या हांसिल

 

   ग़म की आँधी में सब कुछ मेरा बह गया

होठों की हँसी, आँख का काजल और

मेरे हाथों की लकीरों पर से तेरा नाम

 

लिखूँ क्या तुम्हारे बारे में

तुम्हें जानती नहीं हूँ

तुम्हें पहचानती नहीं हूँ

तुम मेरे लिए अजनबी हो

 

ग़म की सिलवटें माथे पर न आ जाएँ

इसी कोशिश में मुस्कुराए जाती हूँ

 

ये तेरी आवाज़ है या

टूटते शीशे की ख़नक

इसकी मिठास में फिर

ये दर्द क्यों है ?

 

ग़म की धूप में झुलसकर

सीखा है मैंने जीना

मोहब्बत में सबकुछ गँवाकर

सीखूँगी मैं मरना

 

माही-बे-आब मानिंद तड़पती रही रात भर

क़रार मिला तो अश्क़ों के साए में

(माही-बे-आब --- वह मछली जो पानी से बाहर निकाली जाए) 

 

 

                                  होठों पर मुस्कान सदा बरकरार रहे

इसी बहाने तू सभी को याद रहे

ग़म कभी तुझे छू भी न सके हाँ

तेरी आँखों के कोर सदा मुस्कुराते रहें

 

ख़ुदा से पूछकर देखूँ

शायद वो जानता हो

जो मैंने थामा था

वो दामन किसका था

 

सनम तुम लाख छिपाओ

हमसे न छिप सकेंगे

तुम्हारे ये दर्दो-ग़म

इनमें हिस्सा मेरा भी है

इनका मरहम है मेरे पास

 

साथी तो बहुत मिले हैं मगर

तुमसा न कोई मिला

जो दोस्त को ही दर्द दे

ऐसा न कोई मिला 

 

सितमगरों की इनायत से

ये दिन नसीब हुआ

वो तुम्हें पकड़ लाए

मुझे धमकाने को

 

अजनबीपन की हद तो देखिए

खुद से ही पूछती हूँ अपना नाम

 

कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता

इसलिए जो भी मिल जाए इस ज़िंदगी में

उसी को प्यार का तोहफ़ा समझ क़ुबूल करना

 

बात फैलेगी इस कान से उस कान तक

दम भर में ही बदनामी हो जाएगी

सखी, कैसे बता दूँ राज़ की बात मैं

कि सारे जग में हंसाई हो जाएगी

 

काँटों ने मेरी रूह को ऐसा छलनी किया

कि रूह रूह न रही, वजूद वजूद न रहा

 

मेरे ख़्यालों की सूरत से मिलती है उसकी सूरत

जाने ये मेरी सोच है या हक़ीक़त

हक़ीक़त ही हो तो अच्छा

मेरी तलाश तो ख़त्म होगी

 

मेरी सूरत से जो नफ़रत है तो

निगाहें क्यूँ उठती हैं बार- बार

कनखियों से मुझे देख कर

निगाहें क्यूँ झुकतीं हैं बार-बार

 

नफरत से निगाहें उठती हैं अब

क्या कहूँ ये क़यामत कैसे हुई

जिस चीज़ से मैंने प्यार किया

वो ही मुझसे छिनती गई

अब दिल में नफरत के सिवा

कोई जगह बाकी ही नहीं

 

 

टूटे हाथों से कोई भीख मांगे तो कैसे

मांगने के लिए हाथ भी तो फ़ैलाने होंगे

और जो भीख मिल भी गई तो

समेटने के लिए हाथ भी तो चलाने होंगे

 

शर्मिंदगी इस बात की है मुझको कि मैं

इतने ज़ख़्म खाकर भी संभल न पाई

बार-बार सभी ने ज़ख्मों को कुरेदा मेरे

मैं थी पागल जो इन्हें दबा भी न पाई

 

वायदा खिलाफी की है मैंने

पर मैं गुनहगार नहीं

तुम्हें भूलने का वायदा तो किया

पर भूल पाई नहीं

इसमें कुसूर मेरा नहीं

तुम्हारी यादों का है

तुम्हारी मोहब्बत का है

जो वफ़ादारी करके

ज़फ़ा कर गई।

 

 

 

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