आबलापाई
"आबलापाई रास आती है मुझे
ज़ख़्मों की सौगात सुहाती है मुझे
फूले हुए फफोलों की चादर है जो
रह-रहकर काँटों में फँसाती है मुझे
हाँ, एक मरहम है जो पाया है मैंने
जब भी कभी तेरा नाम है लिया
छालों के रिसते पानी को
अपनी आँखों से बहाया है मैंने"
नीता पाठक
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