दायरा
कुछ ख़्वाबों से लड़ी हूँ
कुछ ख़्वाबों से सुलह की
कुछ से प्यार किया
कुछ से नफ़रत की
जो भी हो बात ये रही कि
मैं हमेशा ख़्वाबों में ही रही
जब कभी किसी ने जगाया मुझे
तो उसे गुनहगार समझ
अपने ही दायरों में
फिर मैं सिमट गई।
नीता पाठक
https://nitapathak1909-hindi.blogspot.com
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