डर
मैं डरती हूँ
दिल को छीलने वाले काँटों से
जो दिल में
इतना गहरा ज़ख़्म कर देते हैं
कि कभी नहीं भरते
मैं डरती हूँ तो
इस ख़ौफ़नाक दुनिया की भीड़ से
जिसमें मेरा वजूद खो सकता है
और अल्लाह
मेरा तो कोई सहारा भी नहीं
मैं डरती हूँ तो
उस क़यामत से जो मुझे
मेरे माज़ी से दूर ले जाएगी
मैं मौत से नहीं डरती
डरती हूँ ज़िन्दगी से
जो हर मोड़ पर
इंसान का इम्तहान लेती है
अगर मैं डरती हूँ तो
ज़िन्दगी और मौत के बीच
पल-पल मरते शख़्स के दर्द से
और कोई ऐसी चीज़ नहीं
जिससे मुझे डर लगता हो।
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