सोज़े ग़म
दिल सोज़े ग़म से यूं जलता है
रात में चिराग़ ज्यूँ जलता है
जब याद आती है तेरी महफ़िल
हाथों का ख़ाली पैमाना मचलता है
जलाकर शमाँ इंतज़ार की दिल
सूनी राह पर निकलता है
पूछता राहगीरों से तेरा पता
हर राह पर तन्हा भटकता है
इस नाक़ाम तलाश में जब
कुछ हाथ नहीं लगता है
आंसुओं की बरसात से फिर
सोज़े ग़म की आग बुझाता है
आंसू से ये आग नहीं बुझती
सुलगती और भड़कती है
दिल सोज़े ग़म से ख़ाक हुआ
फिर भी तेरी तमन्ना करता है।
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