बचपन
हमारा --
दिन फ़ीका रात
कड़वी।
बचपन --
खुशनुमा है तो
बचपन
जिसे तबाही का
एहसास नहीं
हर पल रंगीन
हर मौसम हसीन।
और हमारा --
दर्द नाक़ाबिले
बयां
जिसके ख़्याल से
ही
सिहरन होती है
दिल भागना चाहता
है कहीं
सुकून की तलाश
में
अनजानी डगर पर
अनजाने सफर पर।
बचपन --
जिसकी राहें मखमल
की
सपनों की सुहानी
मंज़िल
छोटे ख़्वाब, सच्ची ख़ुशी।
फिर
क्यों नहीं लौटते
सुहाने दिन बचपन
के?
क्योँ न हम ही
बुलाएं
बचपन को अपने
में।
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