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Best Love Poem- महबूब का पता

 




महबूब का पता

  

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता

कहूँगी रहता है गुलशन की फ़िज़ाओं में

महकाता है फूलों को बसकर हवाओं में

 

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता

कहूँगी रहता है मेरी ज़ुल्फ़ों की घटाओं में

सहलाता मेरे छालों को बनकर दर्द हवाओं में

 

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता

कहूँगी रहता है मेरे नैनों की भाषाओँ में

दिखाता है बहार मुझे इन खिज़ाओं में

 

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता

कहूँगी रहता है इन रुपहली वादियों में

सुनाता है अपनी धड़कनें इन ख़लाओं में

 

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता

कहूँगी रहता है मेरी इबादतों में दुआओं में

दिखाता है जलवा बनकर ख़ुदा ख़ुदाओं में

 

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता

कहूँगी रहता है वो मेरी हर वफ़ाओं में

रहता है मेरी मदहोशी में तमन्नाओं में

 

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता

कहूँगी रहता है मेरी धड़कन की सदाओं में

रहता है मेरे जिस्म-ओ-रूह की गुफ़ाओं में

मुझसे ग़र कोई पूछे मेरे महबूब का पता









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