मैं.....
मैं
एक मासूम फूल हूँ
जिसे वक़्त के बेरहम हाथों ने
मसलकर फेंक दिया है
उस ज़मीन पर जहाँ
सिर्फ़ आँसू और आहों के
अगर कुछ मिलता है तो
प्यास.......
जो कोई नहीं बुझा सकता
जिसे कोई नहीं मिटा सकता
ये प्यास रोम रोम को तरसाकर
एक ज़िन्दा लाश बना देती है
और ज़माने की हवा
उसे जहाँ चाहे वहाँ उड़ा ले जाती है
औ कभी ला पटकती है गलियों में
ताकि लोग आएँ औ अपने पैरों तले
उस प्यासी आत्मा को कुचलें
जो बेकार ही साँसों का कफ़न ओढ़े है
जिसे नहीं मालूम कि
उसे जीने का हक़ नहीं
जिसे साँस लेने की भी इजाज़त नहीं।
नीता पाठक
https://nitapathak1909-hindi.blogspot.com
0 टिप्पणियाँ
If you have any doubts, feel free to share on my email.