"मेरी, तुम्हारी
दास्ताँ ये है कि
दास्ताँ कुछ भी नहीं
बस एक ख़ामोशी है जो
नज़रों से टकराती है
औ ख़लाओं में बिखर जाती है
तुम, तुम रह जाते हो
और मैं, मैं ही "
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