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Hindi Poem- मैं और तुम


 


मैं और तुम

 


"मेरी, तुम्हारी

दास्ताँ ये है कि

दास्ताँ कुछ भी नहीं

बस एक ख़ामोशी है जो

नज़रों से टकराती है

ख़लाओं में बिखर जाती है

तुम, तुम रह जाते हो

और मैं, मैं ही "

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