तलाश
दिल खाली था दिमाग खाली था
और वक़्त मुसलसल दौड़े जा रहा था
परेशानी की कुछ बूँदें माथे पर छलक आतीं
जिन्हें मिटाने की कोशिश करती
ख़ाली हाथों को घंटों देखती
आड़ी- तिरछी लकीरों में झाँकती
कि शायद
कोई वजह, कोई राज़ मिले
पर हांसिल कुछ न हुआ
हाँ,
इसी कोशिश में वक़्त का कुछ हिस्सा कट जाता
और जो रह जाता वो पहाड़- सा सामने आ
आँखों का रास्ता रोक लेता
इससे पहले कि कुछ दिखाई दे
इससे पहले कि कुछ सुझाई दे
कोई हक़ीक़त आ आँखों पे हाथ रख देती
इसी आँख- मिचौली में कई लम्हे,
कई महीने और कई बरस गुज़रे
लेकिन कुछ समझ न सकी कि
मैं क्या चाहती थी और
क्या पाने को घर से निकली थी
बस चंद लम्हों की याद के सिवा
कुछ भी तो नहीं पाया
आखिर मैंने चाहा क्या था ?
क्या तलाशती थी मैं ?
2 टिप्पणियाँ
Bahut sundar
जवाब देंहटाएंDeeppppp
जवाब देंहटाएंIf you have any doubts, feel free to share on my email.