दान
तुम्हारे गंदे बिखरे बाल
तुम्हारा धूल से सना मुँह
फटे कपड़े और नंगे पाँव
देख कर एक दयालू ने
दया में भरकर अपने बच्चे के
पुराने कपड़े तो ला दिए
जिसे पाकर तुम फूले न समाए
लेकिन उन्हें पहन तुम
पहले से बदतर दिखते हो
लम्बे - बड़े कपड़ों में
तुम्हारा नन्हा-सा शरीर
और नन्हा लग रहा है
तुम्हें देखकर जाने क्यों
मुझे अपना बचपन याद आता है
मैं भी तुम्हारी तरह ही
तकलीफ़ें सहकर बड़ा हुआ
अब जैसे तकलीफ़ें कुछ हैं ही नहीं
मैं तो बस अपनी टूटी टाँग का रोना रो
सड़क के किनारे फुटपाथ पर बैठ
भीख में जो कमाता हूँ
उससे पेट की आग बुझाता हूँ
मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ ?
तुम्हें मैं क्या दूँ ?
मैं तो ख़ुद एक भिखारी हूँ।
1 टिप्पणियाँ
I liked the message of the poem and the story it tells. I think the rhyme scheme is a bit off.
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