भ्रष्टाचार विरोधी प्रचार प्रसार
'बर्बाद गुलिस्ताँ करने को
एक ही उल्लू काफी है
यहाँ हर शाख पर उल्लू बैठा है
अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा ?'
सम्माननीय अग्रगण्य मुख्यातिथि महोदय, नीरक्षीर विवेकी हंस
स्वरुप निर्णायक मंडल, प्रतियोगिता रस पिपासु
प्रबुद्ध श्रोतागण, दूर - दूर से आए मेरे प्रतिभागी
साथियों मेरा प्रणाम स्वीकार करें। आज मैं,
नीता पाठक, आज इस भाषण प्रतियोगिता में 'भ्रष्टाचार विरोधी प्रचार प्रसार' विषय पर आपके समक्ष अपने विचार
प्रस्तुत करना चाहती हूँ। आशा है की आप सभी मुझे ध्यानपूर्वक सुनकर मेरा उत्साह
वर्धन करेंगे।
मान्यवर, भ्रष्टाचार का नाम सुनते ही
प्रत्येक मनुष्य के मन मस्तिष्क पर एक नेता की छवि उभरने लगती है। नेता तो
भ्रष्टाचार का जैसे पर्याय बन गया है।
परन्तु आज का आम आदमी `इस सच्चाई को झुठला नहीं
सकता कि वह भी भ्रष्टाचार में लिप्त है। भ्रष्टाचार एक ऐसा पौधा है जिसकी जड़ें आज
हर आम आदमी से लेकर हर एक विशेष आदमी के भी मनमस्तिष्क में जम चुकी हैं।
भ्रष्टाचार एक महामारी की तरह समाज में फैल चुका है। इसका उदाहरण आप अपने आस-पास समाज में प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं। जैसे कोई पुलिसवाला यदि आपकी मोटरसाइकिल या कार को ट्रैफिक सिग्नल तोड़ने के लिए रोकता है, तो आप उसे सौ-पांच सौ रूपए के नोट दिखाकर बचकर निकलना चाहते हैं। लेकिन चालान नहीं कटवाना चाहते। नहीं तो बताइये-- वास्तविकता में यहाँ कौन भ्रष्ट है? वो पुलिसवाला या आप स्वयं? सरकारी नौकरी हो या प्राइवेट नौकरी- दोनों ही आज आपको आपकी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि अधिकतर रिश्वत के आधार पर दी जाती हैं। जिन प्रतियोगियों ने रिश्वत की मोटी रकम भर दी होती है उन प्रतियोगियों से साक्षात्कार में आसान प्रश्न पूछकर पास कर दिया जाता है उन्हें नौकरी पर रख लिया जाता है। इसी भ्रष्टाचार में योग्यता कहीं खो जाती है।
'भ्रष्टाचार की आँधी में
इल्म कहीं पर खो गया
हमीं ने पाई नौकरी और
ज़ुल्म हमीं पर हो गया'
प्रबुद्ध श्रोतागण, आज हमारे बीच ऐसी परिस्थिति है कि स्वार्थ और लोभ के दलदल में इंसान इतना धँस चुका है कि उसे घर की चार-दीवारी के बाहर की पूरी दुनिया परायी प्रतीत होती है - चाहे वह पड़ोसी हो या फिर देश। आज एक आदमी की दुनिया केवल उसके परिवार तक सीमित रह गयी है। वैसे आप लोग सोचिए कि क्या कभी किसी जानवर ने झूठ, रिश्वत, सिफारिश या फिर ठगी का सहारा लिया है।
नहीं न, तो क्या हम जानवरों से भी गए गुज़रे हो गए हैं ? यह भ्रष्टाचार भी प्रबुद्धता की देन है। बुद्धि, बल, छल का परिणाम है- भ्रष्टाचार। ज्यादा बुद्धि प्रदर्शन, अधिकाधिक धनी बनने की लोलुपता ही आज मानव का स्वभाव बन गया है। जिसकी चकाचौंध से सदाचार, अनुशासन, सत्यवादिता जैसे भाव केवल शब्द बनकर पुस्तकों आदि की शोभा बड़ा रहे हैं। असल व्यवहार से इनका नाता टूट चुका है।
समाज की साँझी खुशियाँ बिलखती देखी हैं
हाय रे, यह भ्रष्टाचार का दानव !
इन्सानियत की दुनिया बिखरती देखी है।
विशेषज्ञों और कारोबारियों के अनुसार, दावोस में WEF 2020 में जारी सीपीआई, सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के अपने कथित स्तरों
द्वारा 180 देशों और क्षेत्रों को
रैंक करता है।
डेनमार्क और न्यूजीलैंड शीर्ष स्थान पर काबिज हैं, इसके बाद शीर्ष दस में फिनलैंड, सिंगापुर, स्वीडन और स्विट्जरलैंड हैं। शीर्ष स्तर के अन्य देश नॉर्वे (7 वीं रैंक), नीदरलैंड (8 वें), जर्मनी और लक्जमबर्ग (9 वें) हैं।
41 के स्कोर के साथ, भारत 80 वें स्थान पर है। रैंक
को चीन, बेनिन, घाना और मोरक्को द्वारा
भी साझा किया गया है। पड़ोसी पाकिस्तान को 120 वें स्थान पर रखा गया है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने कहा कि इस साल के विश्लेषण से पता चलता है कि
भ्रष्टाचार उन देशों में अधिक व्याप्त है, जहां बड़ी रकम स्वतंत्र रूप से चुनावी अभियानों में
प्रवाहित हो सकती है और जहां सरकारें केवल अमीर या अच्छी तरह से जुड़े लोगों की
आवाज सुनती हैं।
भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने कन्धों पर दायित्व उठाना होगा क्योंकि हर नस में भ्रष्टाचार का ज़हर आज खून की जगह दौड़ रहा है। जब कोई समस्या अनेक व्यक्तियों के कारण उत्पन्न होती है तो उसका निवारण भी हर एक के योगदान से ही होता है। जैसा कि कहावत भी है- 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है?' आज के युग में एक महात्मा बापू नहीं बल्कि सैकड़ों महात्मा बापू मिलकर ही भ्रष्टाचार के दानव का खात्मा कर सकते हैं। अब वक़्त आ गया है जब मनुष्य को स्वयं में बदलाव लाकर समाज में क्रांति लानी होगी। अपने निजी स्वार्थ को छोड़कर देश को उन्नति की ओर अग्रसर करना होगा। खुद के अहम् को मिटाना होगा, प्रेम और सदभाव के रिश्तों को अपनाना होगा, स्वयं से भ्रष्टाचार को दूर रखना होगा, समाज को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए मिल-जुलकर हर संभव प्रयास करना होगा। अब बहुत हुआ, बहुत सह चुके हैं आपसी भेदभाव को, बहुत दौड़ चुके है औरों को पीछे छोड़कर। बहुत ऊपर जा चुके हैं एक दूसरे के कन्धों पर चढ़कर। बहुत नारे लगा चुके हैं, बहुत लेख पढ़ चुके हैं, बहुत भाषण दे चुके हैं। अब समय है देखी-सुनी, पढ़ी-लिखी बातों से आगे निकलकर उन्हें क्रियान्वित करने का। तभी होगी एक प्रकाशमय सुबह, तभी ढलेगा भ्रष्टाचार का अँधेरा।
अतीत स्वयं जवाब है, इसपर सवाल नहीं होते
मिट्टी की गोद में डूबे बिना गुलाब नहीं होते
चिरागों की तरह जलना पड़ता है महज
मुट्ठियाँ बाँधने से इन्क़लाब नहीं होते
तो आइये, भ्रष्टाचार की जड़ें उखाड़ कर हम अग्रसर हों एक सुनहरी भोर की ओर। और चलो मिलकर करें पारदर्शी, उज्जवल और बेहतर भविष्य निर्माण।
3 टिप्पणियाँ
भ्रष्टाचार की गजब विवेचना गजब का लेख
जवाब देंहटाएंग़ज़ब विवेचना।
जवाब देंहटाएंBeautifully explained Corruption
Well written!
जवाब देंहटाएंIf you have any doubts, feel free to share on my email.