ज़िन्दगी
यूँ ही दिन ढल जाता है
रात यूँ ही गुज़र जाती है
ज़िन्दगी की खुशियों में
ज्यूँ स्याही घुल जाती है
हर लम्हा बिखरा-बिखरा
हर चाहत सिमटी-सिमटी
दिल के ग़म पर
ख़ामोशी का ताला
भटकती आँखों की बेबसी
तड़पती रूह की तलाश
हर सफ़र अधूरा-अधूरा
हर महफ़िल उजड़ी-उजड़ी
मंज़िल की राह काँटों भरी
उस पर चलना शाम-सहर
राहरौ के ज़ख़्मी पां का खूं
मंज़िल का पता दे न सही
मगर भटके मुसाफिर को
रास्ते का निशां तो मिलेगा।
0 टिप्पणियाँ
If you have any doubts, feel free to share on my email.