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ज़िन्दगी


ज़िन्दगी
 

यूँ ही दिन ढल जाता है

रात यूँ ही गुज़र जाती है

ज़िन्दगी की खुशियों में

ज्यूँ स्याही घुल जाती है

हर लम्हा बिखरा-बिखरा

हर चाहत सिमटी-सिमटी

दिल के ग़म पर

ख़ामोशी का ताला

भटकती आँखों की बेबसी

तड़पती रूह की तलाश

हर सफ़र अधूरा-अधूरा

हर महफ़िल उजड़ी-उजड़ी

मंज़िल की राह काँटों भरी

उस पर चलना शाम-सहर

राहरौ के ज़ख़्मी पां का खूं

मंज़िल का पता दे न सही

मगर भटके मुसाफिर को

रास्ते का निशां तो मिलेगा।

 

 


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