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ए काश !





ए काश !

 

अगर मेरे पंख होते

तो मैं उड़ती

ऊँचे आसमान में

और कभी धरती पर

नहीं उतरती

क्योंकि मैं जानती हूँ

ये दुनिया कितनी ज़ालिम है

किसी का ऊँचा उठना

इससे सहन नहीं होता

ये दूसरे की आँखों के

ख़्वाब तक छीन लेती है

और पंख काटकर

जकड़ लेती है पिंजरे में

जिससे फिर आज़ाद होना

एक ख़्वाब बन जाता है

जो कभी पूरा नहीं होता

काश !

मेरे पंख होते

तो मैं दुनिया की क़ैद से

दूर कहीं खुले आसमान में

उड़ रही होती

ए काश !

 

 

(14/01/1998)


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