सबसे बेहतरीन कविताएँ
क्या है ये?
लगता नहीं तुझसे
मोहब्बत है मुझे
जब तू नहीं होता है
लगता है तेरी
ख़्वाहिश है मुझे
इस बेक़रारी का कुछ तो नाम होगा
इस ख़ामोशी का कुछ तो जवाब होगा
क्या कहते हैं इसे ?
पसंद
दोस्ती
या
मोहब्बत ?
मोहब्बत
दिल में तूफ़ान
उठाकर चली गईं
देर बाद जब तूफ़ान
थमा
एक नया एहसास जगा
क्या कहूँ इसे ?
क्या नाम दूँ उसे ?
तेरी याद
या
मोहब्बत ?
तलाश
ए हमदम
बस इक तेरे दीदार
के लिए
मगर अल्लाह
तेरे दर की रहगुज़र
पर
नहीं है अपना
ठिकाना
न दिन ही बसर होता
है
न रात ही कटती है
दिल की ये हालत कि
जान हथेली पर रख
दी है
शमां परवाने पे
कुर्बां होती है
जिसे तेरे
हुक़्मरामे ले जाएं
या तेरी शोख़ नज़र।
गज़ब होता
तू किसी और का बन गया होता और
मैं तेरे इंतज़ार में बैठी रहती
जब क़यामत का दिन आता
ख़ुदा पूछता मुझसे मेरी रज़ा
मैं ख़ामोश रहती और तू
किसी और के साथ खड़ा होता
मेरे दिल की तब क्या हालत होती
या ख़ुदाया ! मुझे ही पता होता
लेकिन मैं बच गई हूँ उस दौर से
जो दर्द का तूफ़ान ले आया होता।
अँधेरा
आज फ़ीकी क्यों है ?
शायद इनका दिल भी
ज़ख़्मी हुआ होगा
मेरी तरह
इन्होंने भी देखा होगा
किसी अपने का बिछड़ना
और बहाए होंगे इतने अश्क़
जो इनकी चमक कम हो गई
धीरे- धीरे ख़त्म हो
जाएगी
इनकी रौशनी और फिर
खो जाएगा इनका वजूद
एक गुमनाम अँधेरे में।
आँसुओं का समंदर
मेरे लिए उधार ले आ
मुझे आँसुओं का समंदर बनाना है
मेरी आँखों के आँसुओं ने
दरिया ही बनाया है
औरों के आँसू कीमती ज़्यादा हैं
जिनसे मेरी ख़्वाहिश का
तक़ाज़ा हो सकता है
हर दामन का आँसू मिलकर
इक आबेहयात बनाएगा
जिसकी लरज़ से दुनिया का ग़ुबार
इक रौ में बह जाएगा।
जाने क्या कह गए हम
जाने क्या कह गए हम
और उनकी बातों को
जाने क्या समझ गए हम
जब होश आया तो उन्हें
दामन छुड़ाकर जाते पाया
दिल ने चाहा दौड़कर
उनके दामन को थाम लूँ
ना जाने की इल्तज़ाह करूँ
लेकिन इतना भी दम न रहा
जो पाँव उठते या ज़ुबाँ ही खुलती
मन की बात मन में ही रह गई
वो आँखों से ओझल हो गए
पर दिल से ओझल कभी न हुए।
खालीपन
सदियों से था मुझे
आज वो इंतज़ार ख़त्म हुआ
साथ ही ख़त्म हुआ सोज़े ग़म
मगर यूँ लगता है
ग़म की आदत हमें नहीं छोड़ेगी
इसीलिए मनचाहा पाने पर भी
कुछ कमी महसूस होती है
जैसे कहीं कोई जगह
खाली हो गई है इस दिल में।
फूल
मौसम पर जाता है
लेकिन मेरा
मुरझाया दिल
किस मौसम में
खिलता है
मुझे भी नहीं
मालूम।
मेरा माज़ी
मेरे दामन पर
जिन्हें वक़्त छुटा
नहीं पाया
औ शायद इस ज़िंदगी
में
छुट भी न सकेंगे
जिनकी वजह से मेरा
'आज'
घायल हुआ जाता है
और मैं बेबस
मरहम भी नहीं
सकती।
ख़ुदा
उसे ख़ुदा का नाम
दिया
समय से पहले मौत
आई जिसे
उसे तक़दीर ने मारा
किया
हमने तो न पाने की
कोशिश की
न मौत ही आई हमें
क्या कहा जाए उसे
जो
फ़लक औ ज़मीं से
जुदा हुआ।
ग़लतफ़हमी
वो ग़लतफ़हमी थी
मोहब्बत नहीं
शायद धोखा था या
वक़्त गुज़ारने का
तरीका
जो हम समझ न सके
और सौंप दिया दिल
तुम्हें
मालूम न था तुम
ठुकराओगे
फिर न तुम्हारा
रहा न हमारा
भूल हुई जो हमने
ये समझा
गलती हमारी ही थी
सो
सजा हमारी ही रही
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