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मुस्कान

मुस्कान

 

शाम ढालकर रात में बदल गई

और रात -

रात की ताबानियाँ बढ़ने लगीं

सबकुछ स्याही में छिपने लगा

अगर कुछ नहीं छिप सका तो

वो इन आँखों में चमकते मोती

वो मोती जिनकी कीमत आंको

तो बेशक़ीमती है मगर जिनकी

दुनिया में कोई कीमत ही नहीं

इन्हें किसी ने एक बार

अपने दामन की पनाह दी थी

किस्मत की आग ने जिसे जला डाला

अब इन्हें संभाले कौन ?

बस शाख से टूटे पत्तों की तरह

झड़-झड़ कर कहीं गुम हो जाते हैं

रात की स्याही में मुंह छिपाते

दिन को सूखकर मुस्कान बन जाते हैं।


 


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