आज जी चाहता है
जी चाहता है इन हवाओं को
अपने दामन में बाँध लूँ
बादलों को अपने पपोटों से
छूकर बेमानी कर दूँ
इस सूरज को छुऊँ और
छूकर बेनूर कर दूँ
ऐसे मौसम में
किसका जी न चाहेगा
आसमान में उड़कर
पतंग को पकड़ लाने का
या फिर
सिर्फ
पंछियों के उड़ने को झुठलाने का
आज जी चाहता है
ये मंज़र आँखों में भरकर
पलकें बंद कर लूँ
कहीं ये ढलक न जाए
आज ख़्वाब-सा नज़ारा है
मैं चाहूँ कि किसी अंधे को
आँखें दे दूँ
और कहूँ
देख
दुनिया कितनी रंगीन है।
0 टिप्पणियाँ
If you have any doubts, feel free to share on my email.