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पुकार

पुकार

 

मैंने कई बार पुकारा

पर कोई जवाब न मिला

टकराकर वीरान दीवारों से

आवाज़ मेरी लौट आई

फिर ख़ामोशी छा गई

अचानक

एक चीख़ दीवारों को चीरती

पहुँची मेरे कानों में

मानो किसी ने तड़पकर

नाम लिया मेरा

मुड़कर देखा

एक ख़ौफ़नाक बुत

बड़ा आ रही था मेरी ओर

जिसकी आँखों में प्यास थी

मेरे ही ख़्वाबों की

उसने मुझे ऐसे जकड़ा

कि मेरा दम घुटने लगा

मदद को किसे पुकारूँ

आस-पास कोई भी तो नहीं

धीरे-धीरे उसके शिकंजे में

पूरी तरह फँसने लगी मैं

जिससे बचाव का कोई रास्ता नहीं

सिवाए मेरे हार मान लेने के।


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