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कहना मुश्किल


कहना मुश्किल
 

 कहना भी मुश्किल है और

समझना भी आसान नहीं

जब तक ज़ुबाँ कुछ न कहे

आँखें भी नीची झुकी रहें

फिर कैसे कोई जान सके

दिल में है क्या और होठों

पर क्या लाना आसान नहीं

 

जब तक कोई रुके न सुने

फिर कैसे कोई जान सके

दिल में है क्या और होठों

पर क्या लाना आसान नहीं

 

इशारे ये बात कह न सके

चलने की दिशा भी न बोले

फिर कैसे कोई समझे कि

दिल में है क्या और होठों

पर क्या लाना मुश्किल है

 

हाँ, एक तरीका और भी है

ग़र लिखकर ही कुछ बात बने

लेकिन जब कलम ही साथ न दे

तो कैसे कोई बता सके

दिल में है क्या और होठों

पर क्या लाना आसान नहीं

 

कैसी अजब ये उलझन है

कैसी गजब ये मुश्किल है

ऐसे में खुदाया क्यों तू भी

मुझ पर मेहरबान नहीं ?

 

 

 


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