आग
जब राख के नीचे सुलगती आग
भड़क उठती है
तब सारी दुनिया की मदहोशी
तड़प उठती है
हर आँख जागकर तबाही की कहानी
कह उठती है
जिसमें सब कुछ जल उठता है
मासूम बच्चे की मुस्कुराहट से लेकर
सुहागिन का सिन्दूर तक
बूढ़ी माँ की गोद से
खुदा की रहमत तक
फिर इंसानियत क्या है
कौन जाने
कौन जाने ये किसका ख़ात्मा है
दूसरे की आँख का पानी नहीं
अपनी ही आँख का सपना है
जिसे चूर- चूर किया वो
दूसरा नहीं कोई,
अपना है।
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