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क्या हो गए हम ?

क्या हो गए हम ?

 

बेझिझक मेरे नज़दीक आओ तुम

हमें पत्थर का बुत ही पाओगे

जुदाई कुछ इतनी लम्बी रही

अब किसी और ही मोड़ पे पाओगे

जहाँ हम तन्हा हैं और

महफ़िल भी तन्हा पाओगे

पूछो कैसे गुज़रती है शामो-सहर अपनी

इसमें मय का रंग ही पाओगे

बेख़ौफ़ चले आओ तुम

इस घर में वीराना ही पाओगे

उस कोने में पड़ी शमां

क्या उसे जला जाओगे

ये मेरा दिल है इसे भी

क्या ठुकरा कर चले जाओगे

माना गरीब हैं हम

फिर भी फायदे में रह जाओगे

ग़र उठा लिया हमारा दिल

आबे- हयात क्या है जान जाओगे

बेझिझक मेरे नज़दीक आओ तुम।


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