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सूरज

सूरज

 

अभी- अभी सूरज डूबा है

उस पेड़ के पीछे

उस नदी के नीचे

शायद उसे तैरना नहीं आता

इसीलिए अभी तक ऊपर नहीं आया

 

शायद किसी ने उसका क़त्ल कर दिया है

ख़ून के छींटें अभी भी नज़र आते हैं

ख़ामोश ठहरे पानी पर

पानी की सुर्ख़ी से लगता है

ज्यूँ सारी दुनिया का क़त्ल हुआ है

 

अभी- अभी सूरज डूबा है

उस मकान के पीछे

उतरा है आसमां से नीचे

शायद थक गया है

इसीलिए सोने चला गया है

शायद बेहोशी के आलम में है

उसके खर्राटों की आवाज़ें आ रही हैं

इन सियाह नज़ारों में

इतनी तेज़ मानो सारी दुनिया को

लोरी सुना रहा है

 

अभी- अभी सूरज डूबा है

पड़ोस के घर में

मना रहे हैं मातम

 

मुझे इंतज़ार था रात का

वो आ पहुँची है

मैं खुश हूँ

मैं झूम रही हूँ।










 


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1 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बढ़िया नीता जी। सूरज की भावनाओं को क्या खूब उकेरा है आपने। मज़ा आ गया।

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