कवियित्री की इच्छा
मैं भी लिखना
चाहती हूँ एक कविता
जिसे पढ़कर लोग
कहें
वाह वाह क्या
कविता !
कविता हो तो ऐसी।
और कुछ ऐसा भी
कहें
कवियित्री हो तो
ऐसी।
वाह ! क्या ताल
है, क्या मेल है
शब्द क्या, शब्दों की रेल है
जहाँ नहीं लगता
कोई टिकट
सारे शब्द-
यात्री हैं बेटिकट
क्या ये कभी टिकट
चेकर द्वारा पकड़े जाएंगे ?
हाँ, शायद अलंकारों की
जेल मेँ जकड़े जाएंगे
इसलिए छंदों का
इन्हें देकर टिकट
रवाना करो यहाँ
से फटाफट
अच्छा हुआ पहना
दी है माला
इन्हें छंदों की
अब कविता लग रही
है हम
जैसे बन्दों की।
1 टिप्पणियाँ
Your writing is beautiful.
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