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Best Poem in Hindi- अंतर्मन की पीड़ा

  



अंतर्मन की पीड़ा


आज पीड़ा हो रही है

बहुत पीड़ा हो रही है

जितनी पहले कभी नहीं हुई

क्योंकि आज मानव का सही

रूप में चित्रण देखा है

जो मेरे मनस पटल पर छा गया है

 

पीड़ा क्या सचमुच बहुत है ?

 

हाँ, और पीड़ा भी कैसी

जो दवाओं से नहीं मिट सकती

यह तो मनस- पीड़ा है

जो रोम रोम मैं बसकर

अन्तर्मन की जड़ों को हिला दे

इसका इलाज मन की शांति है

शांति--

 

कब मिलेगी मन को शांति ?

 

जब सभी सुखी होंगे

न कोई ऊँचा होगा

न कोई नीचा

कोई 'मैं' न होगा

कोई 'तू' न होगा

सिर्फ 'हम' होंगे

'तुम्हारा' होगा

'मेरा' होगा

सबकुछ 'हमारा' होगा।





 


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