अबला
बेटी ---
माँ, मेरी चिठ्ठी आई है
पति ने दहेज की
रकम मंगाई है
और लिखा है
'गर तू न लाई पैसे
तो ससुराल न आना ऐसे।
माँ ---
मैं क्या कहूँ बेटी
मेरी तो किस्मत ही है
खोटी
जब तू पैदा हुई थी
तब भी था मेरा यही हाल
और आज
तेरी शादी के बाद भी हूँ
बेहाल।
क्या करूँ ?
कुछ समझ नहीं आता
कहाँ से लाऊँ पैसा
दिमाग में नहीं आता
कहीं से उधार माँगूं
तो भी नहीं गुज़ारा
बेटी, अपना तो
कोई नहीं है सहारा।
बेटी ---
माँ, मैं कैसे ससुराल जा पाऊँगी ?
शायद फिर जीवित नहीं आ
पाऊँगी
पर माँ, क्या ऐसा नहीं हो सकता
जो कुछ ज़ेवर से काम हो
सकता ?
माँ ---
बेटी, ये तू क्या कहती है
तेरी बात मेरे दिल में
चुभती है
अगर होते मेरे पास ज़ेवर
तो क्या ये होते मेरे
तेवर ?
क्या तू नहीं जानती
क्या- क्या हूँ मैं करती
तब कहीं जाकर पैसे पाती?
तू चिंता मत कर
मैं करुँगी कोई बंदोबस्त।
बेटी ---
नहीं माँ, मैं ससुराल जाती हूँ
ऐसे तो मैं हर बार धमकाई
जाती हूँ।
पति ---
आ गईं महारानी
अबकी बार
याद दिला दूंगा नानी।
दहेज की रकम लाई
या ऐसे ही चली आई ?
ला, जल्दी से पैसे निकाल
वरना कर दूंगा हलाल।
पत्नी ---
माँ ने कहा है
थोड़े दिनों की है बात
मैं कर दूंगी
सब ठीक- ठाक।
पति ---
मैंने कहा था
बिना पैसे लिए मत आना
चल जल्दी यहाँ से हो जा
रवाना।
पत्नी ---
अजी ! थोड़ा- सा रहम करो
मुझ बेचारी पर
इतना तो न ज़ुल्म करो।
पति ---
क्या कहा ?
मैं तुझे सताता हूँ
ठहर , अभी तुझे बताता हूँ।
1 टिप्पणियाँ
very heart touching poem mam.
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