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राजा-रानी




राजा - रानी

 

बात आज की नहीं, है बहुत पुरानी

एक राज्य में रहते थे एक राजा रानी

 

राजा था बड़ा क्रूर, रानी थी बड़ी दयालु

दरबार के मंत्रीगण थे सभी बहुत चालू

 

वे राजा को भड़काते थे प्रजा के अहित में

और सोचते रानी को भी कर लेंगे अपने बस में

 

एक दिन जनता आई रानी के पास ले दुहाई

रक्षा करो उन दुष्ट कर्मचारियों से हमारी, माई

 

सुन जनता की फरियाद रानी ने ये ठाना

मुझे राजा से जाकर सब हाल है सुनाना

 

सुनकर रानी की बातें राजा गुस्से में चिल्लाया

क्या कहती हो मेरी प्रजा में साहस इतना आया

 

मैं अभी रौंदकर रख दूंगा उन सबकी खुशहाली

देता हूँ आज्ञा बर्बादी की, ओ सेनापति शक्तिशाली

 

देखकर क्रोध राजा का रानी अकुलाई

की प्रार्थना प्रजा की नहीं है इसमें भलाई

 

इन पर जो करते हो अत्याचार है उसी का ये नतीजा

नहीं है आज हमारे खानदान में राजकुंवर या भतीजा

 

रानी की ऐसी बात सुन राजा ने मन में सोचा

क्यों न ब्राह्मणों को खिलाकर पुण्य कमाएं थोड़ा

 

अगले ही दिन आए इक्यावन मोटे पंडित

सामने रखे थे पकवान मिठाई सुसज्जित 

 

ब्राह्मणों ने खाया जमकर दी आशीष दोनों को

राजा ने सोचा मिटे पाप मिल गया पुण्य मुझको

 

                              अब कर लूँ चाहे जो मन में आवे, होगा जो देखेंगे आगे

स्वर्ग मिलेगा मरने पर क्यों अभी से उसके पीछे भागें

 

हुआ प्रजा पर अत्याचार जो पूछो न मेरे भाई

चीत्कार सुन प्रजाजनों की तब रानी दौड़ी आई

 

लिया शरण में प्रजा को और किया विद्रोह

जागो उठो लड़ें हम सब अब अपने हक को

 

देख रानी का साहस सारी प्रजा चिल्लाई

अब और नहीं सहेंगे अत्याचार मेरे भाई   

 

देख रानी का विद्रोह राजा बहुत गुर्राया

सभी को खत्म करने का हुक्म सुनाया

 

लेकिन न उठे हाथ सेनापति के देख रानी को

मांगी क्षमा कहा चलो रानी अब अपने महल को

 

अब न होगा कोई पीड़ित न कोई अत्याचार 

समझ गया हूँ मैं तुम सब की बातों का सार

 

सुनकर सभी की बातें राजा को सुबुद्धि आई

आज से खत्म होंगे मेरे हाथों सब आतताई

 

हुई खुशहाल सारी प्रजा व राजा और रानी

हुआ न्यायप्रिय राज्य आईं खुशियाँ सुहानी। 







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