ख़्वाब की हक़ीक़त
ख़्वाब से जो पूछो
उसकी मंज़िल कहाँ है तो
वो मासूमियत में
झूठ भी न कह पाएगा
और बता भी दिया तो
यकीन लायक न होगा
ख़्वाब की हक़ीक़त ये है कि
उसकी हक़ीक़त कुछ भी नहीं
पर कुछ ख़्वाब जो हक़ीक़त बने
क्या वो ख़्वाब न थे ?
जो वो ख़्वाब ही थे तो
मेरा ख़्वाब पूरा क्यों नहीं होता ?
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