Most Famous Hindi Poems-2023
इंतज़ार
मैं इंतज़ार में
बैठी थी
कोई आए ऐसे में
पूछे मेरी तबियत
पोछे मेरी आँखों
के आँसू
रखे अपना ठंडा हाथ
मेरे गर्म माथे पर
कहे तेरा दर्द अब
ख़त्म पर है
मगर--
कोई नहीं आया
मैं इंतज़ार मैं
बैठी रही।
ख़ुशबू
हवा चमन की ख़ुशबुओं को
बाँधकर अपने साथ ले गई
मैं इन्तज़ार में बैठी हूँ
हवा कब इधर से गुज़रे
कब आज़ाद करे ख़ुशबुओं को
और मेरा दामन भी
ख़ुशबुओं से भर से जाए
जिसे सभी में बिखेरूँ
अमन के पैग़ाम की तरह।
दिल
जब दिल ने कहा रुको
तो मैं रुक गई
जब दिल ने कहा चलो
तो मैं चलने लगी
कहना न मानूं तो
नाराज़ हो जाता है ये दिल
और इसको नाराज़ करना
मेरे बस में नहीं
पर हर बात मानूं इसकी
ये भी तो ठीक नहीं।
मैं
मुझे अपने आप पर
इक परिंदे का गुमां होता है
जो कभी ऊँचे आसमान में उड़ता है
कभी डाली - डाली पर फुदकता है
इसलिए कि
उसका अकेलापन उसे बेक़रार करता है
साथी की तलाश उसे
एक पल भी चैन से बैठने नहीं देती।
कैसा मुबारक मौका !
हर जानिब खुशियाँ हैं
हर जानिब बहार
हर जानिब रौशनी हैं
हर जानिब प्यार
ये कौन- सा मुबारक़ मौका है
किसका जन्मदिन
आज 'शमां' का मरण दिन है
वे लोग
एक घर जिसके दर पर
रौशनी का मज़मा था
वही दर आज सूना है
लेकिन अभी भी
कुछ लोग वहाँ रहते हैं
जिन्हें किसी ने नहीं देखा
पर रातों को उन्हें
बोलते हुए सुनते हैं
उनकी बर्बादी की कहानी
जिसमें कितनी हक़ीक़त है
वे ही जानते हैं
या फिर उनकी
दर्द भरी चीखें
मगर फिर भी उन्हें
किसी ने देखा नहीं
कभी भी कहीं भी।
जाने कब
जाने कब तेरी पलकों ने
मुझसे इशारा किया
जाने कब मेरा दिल तेरे
पीछे दौड़ने लगा
जाने कब तू जुदा हुआ
और कब दिल टूटा
जाने कब तू फिर आया
किसके साथ और
न जाने कब मेरे दिल ने
धड़कना बंद किया
जानती नहीं
कब क्या हुआ
लेकिन
सब कुछ ख़त्म हुआ
हाँ, इतना जानती हूँ मैं।
गुंचा- ए- ख़्वाब
ग़ुलाब का गुंचा जो आया हाथ में
दिल ने कहा ख़ुशबू को साँसों में
बसाकर महकूँ जैसे ये महकता है
रंग को चुराकर जज़्बातों में
बिखेरूं लफ़्ज़ों में जैसे ये बिखेरता है
कहा दिल ने
इसकी कोमल पंखुड़ियों को
चूमूँ और निहारूँ
सहेजकर रख दूँ
किसी पुरानी किताब के वर्क़ में
कितना खूबसूरत है न फ़ूल
कितना मनमोहक
तभी काँटा चुभा हाथ में
और गिर गया फ़र्श पर
टूट गईं नाज़ुक़ पंखुड़ियाँ
मेरे ख़्वाबों की तरह।
समर्पित (प्रिंस- मेरे कुत्ते को)
भटकते फिरे सुकूँ की तलाश में
उम्र भर
सुकूं मिला मगर दर्दनाक
इस दर्द का आगाज़ भी है
और अंजाम भी
जिसे हमने नाम
तेरी दास्ताँ दिया है
बिना इस दास्ताँ के
मेरी दास्ताँ अधूरी है
बिना तेरी यादग़ाह के
मेरी मोहब्बत ज़ुबानी है
तेरी टूटती साँसों पे
मेरा हर अश्क़ क़ुर्बान है
तेरी अधखुली आँखों से
मेरा हर ज़ख्म उभरा है।
लावा
ज़ख्म जब फूटते हैं लावा बनकर
नश्तर की चुभन से
दिल घायल हो जाता है
मेरे तस्सवुर का कागज़ फटकर
टुकड़े-टुकड़े हो जाता है
जिस पर बनी तेरी तस्वीर औ
लिखे हर पलों का हिसाब
तार-तार होकर
मेरी आँखों के सामने
दर्द के समंदर में भीग जाता है
गलकर जो ख़त्म हो जाता है
और फिर
ज़ख्मों की परत खुलती है
एक नए सिरे से और
आग़ाज़ होता है नए ज़ख्मों का
जिनमें पहले से ज़्यादा
शिद्दत होती है
कहीं ज़्यादा तड़प।
1 टिप्पणियाँ
Bahut sundar
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